GENOCIDE : एक लेख ने पकिस्तान के घिनौने चेहरे को दुनिया के सामने ला दिया
साल 1947 विश्व के इतिहास का वो साल जिसने एक तरफ दुनियां को स्वतंत्र भारत तो दूसरी तरफ भारत को पाकिस्तान जैसा नासूर दिया. आज तक न जाने कितनी बार पाकिस्तान अपने गलत रवैये के लिए कठघरे में खड़ा दिखाई दिया. बात उस वक्त की है जब पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था और बांग्लादेश जो की कभी भारत का पूर्वी बंगाल हुआ करता था, आज़ादी के बाद पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था.

लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान का रवैया बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) के साथ पूरी तरह से भेद भाव से पूर्ण था और पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान से अलग होने के स्वर उठने लगे थे ऐसा मुखर रूप से तब हुआ जब पूर्वी पाकिस्तान में अवामी लीग ने चुनावों में जीत दर्ज की लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान से सेना और सरकार ने उनको रोक दिया जिससे अवामी लीग और ज्यादा मुखर हो गई और एक स्वतंत्र राष्ट्र की मांग करने लगी.
पश्चिमी पाकिस्तान से सेना को पूर्वी पाकिस्तान आवामी लीग के दमन के लिए भेजा गया तब तक पूरे विश्व का ध्यान बांग्लादेश पर नहीं था और पाकिस्तान अपनी गुड इमेज को बनाये रखने में सफल रहा था हालांकि कुछ अमेरिकी और ब्रिटिश रिपोर्टरों ने इस ओर ध्यान दिया था पर वो स्थिति को समझा पाने में शायद सफल नहीं हुए या यूं कहें की विश्व के सभी देशों ने इसे अनदेखा ही किया.
इस बीच पाकिस्तान ने अपनी इमेज को और ज्यादा शशक्त दिखाने के लिए पाकिस्तान से कुछ 8 पत्रकारों को पूर्वी पकिस्तान 10 दिने के लिए भेजा, जिन्हे वापस आकर ये लिखना था की कैसे पाकिस्तानी सेना ने हालात को अपने काबू में कर लिया है. ये आठ पत्रकार 10 दिन बाद जब वापस आते हैं तो इनमे से 7 वो लिखते हैं जो उनसे कहा जाता है लेकिन एक पत्रकार जिसने बांग्लादेश में हो रहे भीषण नरसंहार को देखा था झूठ लिखने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पता और बांग्लादेश से सीधा ब्रिटेन चला जाता है. और पाकिस्तानी अधिकारीयों को ये बताता है की उसकी बहन जो की ब्रिटेन में ही रहती है, की तबियत बहुत खराब है जिसे देखने उसे ब्रिटेन आना पड़ा इस पत्रकार का नाम था “एंथोनी मैस्करेनहास”.
ब्रिटेन में वे संडे टाइम्स के एडिटर से मिलते है और अपना आर्टिकल उनसे छापने का अनुरोध करते है जिसे एडिटर मान लेते हैं लेकिन एंथोनी बताते हैं की आर्टिकल छपने से पहले उनको कराची से अपनी पत्नी और बच्चो को सुरक्षित बहार लाना होगा. और वे वापस पाकिस्तान चले जाते है. उस वक्त पाकिस्तान में नियम था कि पाकिस्तानी नागरिक साल में सिर्फ एक बार ही विदेश यात्रा कर सकता है. इसलिए वे पहले किसी तरह बॉर्डर से अफगानिस्तान आते है और फिर वहां से ब्रिटेन के लिए पूरे परिवार के साथ निकल जाते है.

SUNDAY TIMES 13 जून 1971 को मैस्करेनहास का आर्टिकल GENOCIDE हेड लाइन से फ्रंट पर छापता है जिसमे वो बताते है किस तरह से पाकिस्तानी सेना ने बिना किसी भेदभाव के अवामी लीग और पश्चिमी पाकिस्तान के खिलाफ उठने वाली हर आवाज़ को बर्बरता से ख़त्म कर दिया. बंगाली हिन्दुओं, बच्चो, महिलाओं, ढाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर, सबकी निर्ममता से हत्या कर दी गई मारे जाने वालो की संख्या लगभग 300000 बताई गई थी.
इसके बाद पाकिस्तान का वैश्विक स्तर पर विरोध शुरू होता है और भारत भी सीधे तौर पर दखल देने की स्थिति में आता है भारत पाकिस्तान पर सीधा हमला कर देता है जिसे आप इंडो – पाक वॉर 1971 के नाम से जानते हैं. पाकिस्तान की चौतरफा निंदा होती है और आखिरकार पाकिस्तान बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश स्वीकार कर लेता है.