आपकी बात: आयशा की ख़ुदकुशी और आरिफ की गिरफ़्तारी के बीच कुछ बातें…
आयशा, वो लड़की जिसने हँसते हुए अपनी जान दे दी| बेशक ख़ुदकुशी इस्लाम में जायज़ नहीं है। लेकिन क्या निकाह के बाद किसी को बेपनाह मोहब्बत करना वो हराम है? क्या किसी की हर वो बात मान लेना जो बेमानी हो, हराम है? क्या हराम है किसी के लिए खुद को बेच देना?
क्या आज के समाज में आरिफ खान जैसे बुज़दिल, बेअदब, निक्क्मे नौजवान जिसने किसी बच्ची के बूढ़े माँ-बाप की हलाल रोज़ी और उस बच्ची के अरमानो को ऐसे कुतरा जैसे कोई चूहा कुतरता हो अनाज की बोरियां क्या ये सही है? हलाल है क्या?

जी हाँ, आज मैं बात कर रहा हूँ आयशा की, जिसने मौत से कुछ देर पहले की ख़ामोशी को अपने मुस्कुराते हुए चेहरे से ढांप लिया था। उसका कुसूर केवल इतना था कि उसने अपने शौहर ‘आरिफ खान’ से सिर्फ इतना कहा था कि अब अम्मी-अब्बू पर पैसे नहीं है, वे अब और पैसे नहीं दे पाएंगे। उसकी गलती शायद ये थी की उसने उस शख्स को पहचानने में देर कर दी जो सिर्फ और सिर्फ हाथ के मैल पैसे पर मरता था।

आयशा ने जब वक्त के आगे घुटने टेककर अपने शौहर से कहा की – ‘मुझे शायद मर जाना चाहिए!’ तब आरिफ खान जिसका नाम लेते हएु भी मुझे शर्म और गुस्सा आता है, कहता है – ‘जाओ मर जाओ, लेकिन, हाँ मरो तो एक वीडियो मुझे भी भेज देना और उस वीडियो में ख़ुदकुशी का इलज़ाम खुद पर ही लेना।’
हालत से हारकर और अपने माँ-बाप को बेबस देखकर आयशा ने वो कदम उठा लिया जिसका कोई तसव्वुर भी नहीं कर सकता है। आयशा ने अपनी ज़िन्दगी के चंद लम्हो पहले ही कई सवालों का जवाब अपनी वीडियो के ज़रिये अपने शौहर को दे दिया।
सोचिये उस वक्त उन माँ-बाप पर क्या गुज़री होगी जब उन्हें पता चला होगा की उनकी नाज़ो से पली-बड़ी बच्ची इस दनिुया को छोड़कर चली जाएगी! कितने बेबस होंगे वो, क्या कैफियत होगी उनकी, इस चीज़ का हम तसव्वुर भी नहीं कर सकते हैं।
जिस बाप ने अपनी बेटी के मुंह से आखिरी बार सुना हो कि “आखिर कब तक अपनों से लड़ेंगे अब्बू, अब और परेशान नहीं करूंगी आपको?”, क्या उस बाप को ज़िन्दगी भर सुकून मिल पाएगा?

क्या ऐसा था हमारा समाज?, क्या ऐसा था हमारा धर्म? क्या राम-रहीम ने हमे यही शिक्षा दी थी? आखिर कबतक और कितनी बच्चियों के साथ ये ज़ुल्म होता रहेगा।
अरे हमारे धर्म और मज़हब में औरतो का क्या मकाम है और हम लोगो ने एक औरत को कहाँ लाकर खड़ा कर दिया है!
सबसे पुराने ग्रथं मनुस्मृति में कहा गया है –“जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवताओं का वास होता है” लेकिन अफ़सोस आज के इंसान ने राक्षसों को भी शर्मिंदा कर कर दिया है। जिस इस्लाम में शौहर का बीवी को देखकर मुस्कुराने पर सवाब मिलता हो क्या वो इस्लाम औरतो पर इस तरह के ज़ुल्म की इजाज़त देता होगा?
अंत में सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूँ कि आयशा ने जो कि या वो गलत किया| उसे उस झूठी मोहब्बत के खातिर मरना नहीं चाहिए था, बल्कि उसे अपने माँ-बाप की सच्ची मोहब्बत के लिए वापस आना चाहिए था|
लेकिन जो उसके शौहर ने किया वो बिल्कुल गलत और घटिया था| उसे अब कितना भी अफ़सोस हो लेकिन वो पूरी ज़िन्दगी शायद उस वीडियो को देखकर घुटघुटकर मरेगा|
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