धूप की दीवार – Review
मुख्य कलाकार
उमेरा अहमद द्वारा लिखित और हसीब हसन द्वारा निर्देशित वेब सीरीज़ धूप की दीवार जिसमें सजल अली और अहद रज़ा मीर प्रमुख भूमिकाओं में हैं, जबकि ज़ैब रहमान, सवेरा नदीम, सामिया मुमताज़, समीना अहमद, मंज़र सेहबाई प्रमुख भूमिकाओं में हैं।
क्या है धुप की दीवार
कहानी की शुरुआत होती है इंडिया पाकिस्तान वर्ल्डकप मैच से दो अलग अलग देशों में बैठे दो अलग अलग घरों से, लोगों से, दो शहीदों से, दो शहीद परिवारों से, दो दुश्मनों से…
इसका प्लॉट बहुत ज्यादा नया न होते हुए भी एक अलग सी ताज़गी लिए हुए है जैसे सुबह में धूप की पहली किरण होती है वैसा ही कुछ, कई सारे पुराने नए सीरियलों और फिल्मों में भारत पाकिस्तान के जिन मुद्दों को अलग अलग बहुत बार दिखाया या उठाया गया है उनका एक परफेक्ट ब्लेंड है धूप की दीवार।
रिसर्च
रिसर्च के लेवल पर भारत और उसके सामान्य परिवार को जिस तरह से दिखाया गया है वो थोड़ा दिल तोड़ देता है इस हिस्से पर काम थोड़ी और बारीकी और तसल्ली से साथ अगर किया जाता तो और ज्यादा बेहतर हो सकता था ऐसा लगा जैसे इसे सिर्फ काम चलाऊ स्तर पर किया गया, कई जगह पर हम देखते हैं की भारतीय परिवार को दिखाने के लिए उन मिथकों का सहारा लिया गया है जैसा हम सब भारतीय हिंदू परिवारों के बारे में सुनते या देखते आए हैं जैसे भारतीय परिवार में जिसे नौकर या बावर्ची के तौर पर दिखाया गया वो हर वक्त एक टीका लगाए हुए था जो की सामान्य तौर पर नहीं देखा जाता है।
इसके अलावा कई जगह पर भारतीय दर्शकों को कुछ दृश्य या कुछ हिस्से ऐसे लग सकते हैं की ये तो ठीक नहीं है, ऐसा तो नहीं होता पर ये इतने मामूली हैं की इस लिए भी नजरंदाज किया जाना चाहिए की अगर यह सीरीज भारत में बनती तो शायद हम भी कुछ या इससे ज्यादा ही ऐसा करते इसका सीधा सा कारण है हम सभी अपने देश को अपर हैंड पर दिखाना या बताना चाहते हैं।
ऊपर कही हुई बात से आप तब बेहतर रिलेट कर पाएंगे जब आप धूप की दीवार को देखेंगे।
क्या कहती है कहानी
कहानी की अगर बात की जाए तो यकीनन भारत पाक मुद्दों से कहीं ज्यादा मानवीय मुद्दों सरकारों से ज्यादा लोगों और धर्म से ज्यादा अनुराग को इससे बेहतर शायद ही किसी कहानी में अभी तक दिखाया गया हो इसमें सबसे अच्छी बात ये रही कि जब भी हम भारत या पाकिस्तान की कोई भी फिल्म एक दूसरे से जुड़े मुद्दों पर बनी हुई देखते हैं तो यहां की फिल्मों में भारत को और वहां की फिल्मों में पाकिस्तान को एक नायक के रूप में और साथ ही दूसरे को दुश्मन या खलनायक के रूप में दिखाया जाता है जबकि धूप की दीवार में इससे बचने की भरपूर कोशिश दिख जाती है अगर हम कुछ वाकयों को छोड़ दें तो और इस कोशिश के लिए लेखक और डायरेक्टर दोनो बधाई के पात्र हैं।
देखें या नहीं?
एक बार ज़रूर देखने लायक है और स्पष्ट रूप से कहा जाए तो सभी के लिए एक बार अनिवार्य रूप से देखी जाने लायक है, कुछ नहीं तो इन मुद्दों को हम अपने ज़हन में एक बार ताजा कर पाएं जो बुनियाद होती है किसी भी मानवीय संस्कृति की। इसमें आपको देशभक्ति, राजनीति, समाज, संस्कार, प्रेम, दुःख सभी कुछ जीने का एक मौका मिलता है।
रेटिंग: *3/5