इक़बाल मसीह : 12 साल का पाकिस्तानी लड़का जिसने बाल मज़दूरी की जड़े हिला दीं
पकिस्तान में लाहौर से कुछ दूरी पर स्थित एक छोटे से गाँव मुदिरके में जब इक़बाल का जन्म हुआ होगा तो कहाँ पता था की ये छोटा सा लड़का एक दिन मसीह हो जायेगा, वो दुनिया के लिए मिसाल नहीं बनेगा बल्कि जलेगा एक मशाल बनकर जिसकी रौशनी आपकी आँखों को चौंधिया देगी|
कहानी की शुरुआत तब होती है जब 4 साल के इक़बाल को उसके पिता पैसों की तंगी के चलते एक कारपेट बुनकर व्यापारी को बेच देते हैं| जिसके लिए उन्हें 600 रूपए का लोन मिलता है और बदले में अब इक़बाल को उस व्यापारी के पास तब तक काम करना होगा जब तक ये लोन चुकता न हो जाए| इक़बाल और उसके जैसे ही कई और बच्चों से वहाँ 12-12 घंटे काम करवाया जाता, उन्हें जंजीर से बाँध कर रखा जाता जिससे वे भाग न पाएं|
लेकिन 6 साल बाद इक़बाल किसी तरह वहाँ से भागने में कामयाब हो जाता है, वहाँ से भाग कर वो पाकिस्तान में बंधुआ मुक्ति मोर्चा जिसे बॉन्डेड लेबर लिबरेशन फ्रंट(BLLF) भी कहा जाता है के बड़े कार्यकर्ता एहसान उल्ला खान के संपर्क में आता है जो उसे बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराते हैं| इक़बाल उनसे काफी प्रभावित होता है, वो बंधुआ मुक्ति मोर्चा द्वारा दी जाने वाली चार वर्षों की शिक्षा को महज 2 सालों में ख़तम कर लेता है|
इसके बाद वो अपने जैसे ही और बच्चों को भी मुक्त कराने के प्रयासों में जुट जाता है, वो पूरे पाकिस्तान में जागरूकता रैली के माध्यम से लोगों को बाल श्रम के खिलाफ बने कानून से रूबरू करवाता है उन्हें समझाता है की बंधुआ मजदूरी और बाल श्रम गैर कानूनी हैं और और 12 साल की उम्र में महज 8 साल बाद उसके पास दुनियाँ को देने के लिए एक सन्देश होता है वो दुनियाँ के कई देशों की यात्रा करता है और कुछ ही समय में वो बंधुआ मुक्ति मोर्चा का एक शशक्त चेहरा बनकर उभरता है|
स्वीडन और अमेरिका जैसे देशों में अपने व्याख्यान के दौरान वो लोगों से आह्वान करता है की वे आगे आएं और बाल श्रम को जड़ से उखाड़ फेंकने में उसका साथ दें वो अपनी इच्छा प्रकट करता है की वो आगे चलकर वकालत की पढ़ाई करना चाहता है| उसे साल 1994 में महज 12 साल की उम्र में रिबॉक ह्यूमन राइट्स अवार्ड से बोस्टन में नवाज़ा जाता है जहाँ वो लोगों को संबोधित करते हुए कहता है –
मैं उन लाखों बच्चों में से एक हूँ, जो बंधुआ मजदूरी और बाल श्रम से पाकिस्तान में पीड़ित हैं, लेकिन मैं भाग्यशाली हूँ कि बंधुआ मुक्ति मोर्चा (BLLF) के प्रयासों के कारण मैं आज़ाद हूँ| मेरी आजादी के बाद, मैं BLLF स्कूल में शामिल हो गया और मैं अब उस स्कूल में पढ़ रहा हूँ| हमारे जैसे गुलाम बच्चों के लिए एहसान उल्ला खान और BLLF ने वही काम किया है जो अब्राहम लिंकन ने अमेरिका के गुलामों के लिए किया था| आज आप सभी भी आजाद हैं और मैं भी स्वतंत्र हूँ|
-Iqbal Maseeh
फिर वो हुआ जिसका ज़ख्म शायद कभी नहीं भर पायेगा इक़बाल मसीह वो छोटा सा लड़का जिसने बेहद कम उम्र में न जाने कितने ही बड़े – बड़े बंधुआ माफियाओं के रातों की नींद हराम कर दी थी को 16 अप्रैल 1995 को कुछ बुनकर माफियाओं ने गोली मारकर हत्या कर दी और महज़ 12 साल की वो छोटी मगर शशक्त लौ विदा हो गई| वर्ष 2015 में कैलाश सत्यार्थी ने नोबेल पीस अवार्ड लेते वक्त इक़बाल को श्रधांजलि देते हुए कहा की –
“पाकिस्तान के इस लड़के(इक़बाल मसीह) का बलिदान इतिहास कभी नहीं भूलेगा|” – कैलाश सत्यार्थी
रिसर्च एंड स्टोरी: अनुराग”अमन” बाजपेई